यू पी एस सी के परीकछा म भारत के अरथ बेवस्था ला लेके सवाल पूछे गिस। सवाल ये रहय के करजा के कतेक परकार होथे। जे अर्थसासतरी लइका मन बड़ पढ़ लिख के रटरुटाके गे रहय तेमन, रट्टा मारे जवाब लिखे रहय। ओमन लिखे रहय – तीन परकार के करजा होथे, पहिली अलपकालीन, दूसर मध्यकालीन अऊ तीसर दीर्घकालीन। तीनों ला बिसतार से समझाये रहय।
कुछ इनजीनियर किसिम के लइका मन लिखे रहय। करजा तीन परकार के होथे, पहिली किसानी करजा, दूसर उदयोगिक करजा, तीसर घरेलू करजा। तीनों ला उहू मन उधारन देके समझाये रहय।
कुछ अध्यातमिक किसिम के लइका मन घला इहां तक पहुंचे म कामयाब रहय। ओमन लिखे रहय – करजा तीन परकार के होथे, पहिली भगवान के करजा, दूसर मां बाप के करजा, तीसर दुनिया के करजा। यहू मन अपन बात ला सही साबित करे बर अबड़ अकन तरक बितरक दे के समझाती गोठ लिखे रहय।
मेंनेजमेंट ले जुड़े कुछ मन घला परीकछा म बइठे रिहीन। ओमन लिखे रहय। करजा सिरीफ तीन परकार के होथे। पहिली किसिम के करजा ओ आय जेला सिरीफ लेना हे पटाना निये, पटाये के जुम्मेदारी ओकर उत्तराधिकारी के आय। जइसे सरकार लेथे। जे लेथे तेला पटाये के कोई आवसकता निये, पटाये बर दूसर ला मेहनत करे बर परही। दूसर किसिम के करजा ओ आय जेला बियापारी अऊ उदयोगपति मन लेथे। येहा अइसे करजा आय जेला कभू पटानाच नी रहय। पटाये के बेर जादा दबाव अइगे त, बिदेस म सरन ले लेना हे तहन पटाये के कोई आवसकता निये। तीसर करजा ओ आये जेला उत्तम करजा के नाव दिये जाथे। येला उत्तम करजा ये सेती केहे जाथे के लेवइया ला सिरीफ लेके समे झंझट हे पटाये के झनझट निये। ये करजा ला लेना भर मुसकिल हे फेर पटाना न मुसकिल न जरूरी ………। मन चाहे तो पटा सकत हस, नी पटाबे तभो कन्हो बात निये। करजा पटाये बर चुनाव तक अगोर, कन्हो ना कन्हो तोर करजा माफ करे बर आगू आबेच करही। पहिली किसिम के करजा म, करजा लेवइया ला, करजा के सेती, जियत जियत न सरग मिलय न नरक। दूसर किसिम के करजा म पकड़ाये के पहिली, इंहे सरग मिल जथे अऊ पकड़ाये के पाछू बिदेस म सरग मिलथे। फेर तीसर किसिम के करजा म, करजा लेवइया ला सिरीफ माफी भर नी मिलय बलकी अऊ करजा लेके चार बछर कलेचुप बइठे के प्रेरना घला मिलथे। फेर ये करजा के कमी सिरीफ इही आय के, करजा लेवइया, न सरग पाय न नरक, बलकी माफी देवइया मन, जियत जियत अपन संग अपन पूरा परिवार अऊ कुनबा ला सरग के मजा देवा देथे।
परीकछा के परिनाम आगे। मेंनेजमेंट ले जुड़े जम्मो लइका मन पास होके, कलेक्टर बनगे।
हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा